भारत(योगेश@पत्रवार्ता) आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कोई भी देश युद्ध की नीतियों का उल्लंघन नहीं कर सकता।युद्ध के दौरान युद्धबंदियों के लिए भी अंतरराष्ट्रीय कानून बना हुआ है।जिसका उल्लंघन करना किसी भी देश के लिए घातक हो सकता है।
जेनेवा संधि : पहली बार 1864 में कुछ देशों ने युद्धबंदियों के अधिकारों को लेकर एक करार किया। इस संधि को मानवता के लिए जरूरी कदम बताया गया था जिसे जेनेवा संघि कहा गया।इसके बाद 1906 और 1929 में क्रमश: दूसरी और तीसरी संघि हुई। यह संधि तब और मजबूत हो गई जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने जेनेवा संधि पर हस्ताक्षर किए जो चौथी संधि थी।
जेनेवा संधि एक अंतरराष्ट्रीय आचार सहिंता
जेनेवा संधि युद्ध के दौरान युद्धग्रस्त देशों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आचार सहिंता की तरह काम करता है। इस समझौते में युद्धबंदियों के अधिकारों का उल्लेख किया गया है। गिरफ्तार सैनिकों के साथ कैसा बर्ताव करना है,इसको लेकर एक स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं।
जेनेवा संधि के अनुच्छेद-3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल युद्धबंदियों का उपचार कराने का स्पष्ट निर्देश है। युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लौटाना होता है। कोई भी देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता।
युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है। इस संधि के तहत युद्धबंदियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार पर रोक लगाई गई है। युद्धबंदियों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव पर रोक लगाई गई।
इसके साथ ही युद्ध में बंदी सैनिकों के लिए कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी।इस संधि के तहत युद्धबंदियों को किसी तरह से धमकाए जाने पर रोक है।उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता।इस संधि के मुताबिक युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
जेनेवा संधि की महत्वपूर्ण बातें
- इसके तहत संधि के तहत घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाती है।
- संधि के तहत युद्धबंदी बनाए गए सैनिकों के खान-पान का पूरा ध्यान रखा जाता है।
- युद्धबंदी को सभी जरूरी चीजें मुहैया कराई जाती है।
- किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव करना जेनेवा संधि का उल्लंघन माना जाएगा।
- बंदी बनाए गए सैनिक को डराया या धमकाया नहीं जा सकता।
- युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता।
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