टीम पत्रवार्ता,19 जून 2021
सौमित्र रॉय
सदी की सबसे बड़ी मंदी सामने आ रही है! भारत मुद्रास्फीति जनक मंदी के कगार पर खड़ा है। मोदी सरकार और बिक चुकी मीडिया की झूठी सकारात्मकता पर मत जाइए।थोक मूल्य सूचकांक 12.94% की ऐतिहासिक ऊंचाई पर है। खुदरा मूल्य सूचकांक भी 6% की हद से बढ़कर 6.30% पर है।
इन सबके बीच आम लोगों की आमदनी लगातार कम होने से देश में अमीर-ग़रीब के बीच असमानता तेज़ी से बढ़ रही है।
लगता है मोदी सरकार UPA 2 की तरह लकवाग्रस्त हो चुकी है। उसे चुनाव और सत्ता बचाने के सिवा कुछ दिख नहीं रहा है।
सदी की सबसे बड़ी मंदी सामने आ रही है, बेरोजगारी का ऐसा आलम देखने को मिलेगा जो पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया।
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) June 14, 2021
छात्रों पर रहम करिए, जिस काम के लिए आपको प्रचंड बहुमत मिला था उसपर भी ध्यान दीजिए।
आपकी आर्थिक नीतियों की वजह से आज देश बर्बादी के मुहाने पर खड़ा है।
कुछ करिए।
RBI अभी अगस्त तक कुछ करने के मूड में नहीं है। 650 बिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार पर बैठी मोदी सरकार को सरकारी खर्च की दिशा छोटे उद्यमों और ग़रीबों की तरफ मोड़ना चाहिए, जो नहीं हो रहा है।उल्टे सत्ता बचाने के लिए कैबिनेट विस्तार का बोझ जनता पर डालने और तेल के दाम महंगे कर राजस्व घाटे की भरपाई की जा रही है।
यही हाल रहा तो सितंबर तक तेल के दाम 150 रुपये प्रति लीटर से ऊपर जा सकते हैं। मोदी सरकार शायद ही तेल के दाम कम करे।तेल के दाम में प्रति 10% की बढ़त महंगाई में 50 बेसिस पॉइंट की वृद्धि करती है।लेकिन देश हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर और सियासती दांव-पेंच में उलझा है। पर्दे के पीछे देश लगातार मंदी में डूब रहा है।
“उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब,
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है”।
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव कहते हैं
भविष्य का कोई सपना देखे या कोई लक्ष्य चुने बिना, केवल जान बचाने की जद्दोजहद के इस अजीबो- गरीब दौर को शुरू हुए अब लगभग डेढ़ बरस होने जा रहा है।जिनके पास नौकरी है, वे तो वर्क फ्रॉम होम करते हुए इस दौरान भी थोड़ा बहुत सामान्य जिंदगी की अपनी यादें ताजा करते रहे…. लेकिन रियल एस्टेट, टूरिज्म, होटल इंडस्ट्री जैसे पूरी तरह से ठप पड़े ढेर सारे सेक्टर्स के बिजनेस से जुड़े मेरे जैसे ढेरों लोग तो इस दौरान सिरे से लगभग खलिहर ही रहे।
लगता है पूरा देश अमीर हो गया है, आजकल महंगाई छोड़ हर चीज मुद्दा है।
100 रु पेट्रोल और 150 रु खाने का तेल है, रेल से लेकर विमान तक का किराया डेढ़ गुना हो गया है।
वैसे बेरोजगारी और महंगाई की दोहरी मार झेल रहे राष्ट्रहित को समर्पित सैनिक भी अब दबी जबान में दर्द-ए-दिल कहने लगे हैं।
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) June 17, 2021
वैसे, कोरोना के केसेस घटने के कारण लॉकडाउन खुलने की प्रक्रिया शुरू होने के आसार जून के अंत तक या अगले कुछ दिनों में दिख रहे हैं मगर वैक्सिनेशन का प्रतिशत बढ़ने और लोगों से कोरोना का डर खत्म होने में अभी जितना वक्त लगेगा, उतना ही वक्त उद्योग- धंधों को भी सामान्य दशा में लौटने में लगेगा.दरअसल, लोगों में तीसरी लहर का डर अभी बना हुआ है। लिहाजा स्कूल, मॉल, मल्टीप्लेक्स, टूरिज्म, होटल आदि क्षेत्रों की तरह रियल एस्टेट की गाड़ी भी पटरी पर आने या छुक छुक रफ्तार से ही सही, थोड़ा बहुत खिसकने में अभी कुछ और वक्त लगना तय है।
मेरा ऐसा अनुमान है कि जुलाई से थोड़ी बहुत हलचल भले ही दिखने लगे लेकिन सितम्बर या अक्टूबर के बाद से ही ठप पड़े उद्योगों में थोड़ी बहुत रौनक लौट पाएगी…. वह भी तब, जबकि इस बीच में तीसरी लहर जैसा कुछ नया प्रकोप न आए….. और वैक्सिनेशन भी तब तक काफी हद तक संतोषजनक स्थिति में पहुंच चुका हो।
कुल मिलाकर यह कि मोदी जी के दो कार्यकाल के कुल दस बरसों में से पहले सात बरस के दौर का डेढ़- दो बरस नोटबंदी के बाद आई आर्थिक तबाही से उद्योग धंधे बचाते हुए बीता….फिर अगला डेढ़- दो बरस कोरोना से जान बचाते हुए बीता।अर्थात, मोदी जी के राजकाज के कुल सात बरसों में लगभग साढ़े तीन- चार बरस तक जनता अपने रोजगार- व्यापार व अस्तित्व जीवन को बचाने की लड़ाई में ही जूझी रही।
अब बचे मोदी राज के बाकी के तीन बरस….. तो उनके बारे में अभी से क्या कहना या सोचना… यह तो भविष्य ही बताएगा कि आगे क्या होगा….लेकिन पुराने चार भयावह बरसों के अनुभव के बाद बाकी के तीन बरस सामान्य बिता लिए जाएं, इसी को इस वक्त भविष्य की सबसे बड़ी उम्मीद या लक्ष्य मान लेना बेहतर रहेगा…
0 Comments