रायपुर(पत्रवार्ता)प्रदेश में सुशासन स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने मंत्रिमण्डल में क्षेत्रीय संतुलन बनाते हुए नौ विधायकों को जगह दी है।जिसमें सरगुजा के अमरजीत भगत व पत्थलगांव के कद्दावर नेता रामपुकार सिंह को जगह नहीं दी गई है।
महामहिम राज्यपाल ने सार्वजनिक कार्यक्रम में नए मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। मंत्रियों के विभागों की घोषणा आज शाम तक हो सकती है।आपको बता दें कि आज राजभवन में मुख्यमंत्री सहित नये मंत्रियों और विधायकों के लिए भोज का भी इंतजाम किया गया है।
रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में विधायक रवीन्द्र चौबे,मोहम्मद अकबर,उमेश पटेल,शिव डहरिया,प्रेमसाय सिंह, अनिला भेड़िया,कवासी लखमा,रुद्र गुरु और जयसिंह अग्रवाल ने मंत्री पद की शपथ ली।
फिलहाल मंत्री का एक पद रिक्त रखा गया है।जिसमें सरगुजा या जशपुर जिले से कोई चेहरा सामने आ सकता है।इस अवसर पर प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया सहित प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और आम जनता मौजूद रहे।
वर्तमान रजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है जब राजधानी से एक भी मंत्री शपथ नहीं ले सके।खास बात यह कि 8 बार के विधायक रामपुकार सिंह भी बाहर रहे।वहीं बीजेपी शासन में 8 से 10 पद केवल जशपुर जिले से थे।
ऐसे में कांग्रेस शासन में यहां की जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है।रायपुर की बात करें तो यहां से कांग्रेस को तीन सीेटें हासिल हुई हैं।रायपुर ग्रामीण से वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा को मंत्री बनने की उम्मीद थी लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी है। इसी तरह दुर्ग से वरिष्ठ विधायक अरूण वोरा भी मंत्री नही बन सके।
नये मंत्रियों में आदिवासी समाज के तीन मंत्री, सतनामी समाज के 2 मंत्री,ओबीसी से मंत्री सहित कुल चार,अल्पसंख्यक से 1 और सामान्य से दो मंत्री शामिल किये गए हैं।वहीं क्रिश्चन समुदाय से एकमात्र कुनकुरी विधायक उत्तमदान मिंज चुनाव जीतकर आये हैं जिन्हें भी तवज्जो नहीं दी गई इससे उंराव समाज रुष्ट नजर आ रहा है।
हालांकि शपथ के दौरान कई अनुभवी नेताओं को मायूसी हाथ लगी है।उनमें सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू, अमितेश शुक्ला,अरुण वोरा,लखेश्वर बघेल, मनोज मंडावी,अमरजीत भगत,रामपुकार सिंह जैसे नाम शामिल हैं।
कहा जा रहा है कि दावेदारों की संख्या इतनी ज्यादा थी,कि कई दावेदारों को दरकिनार करना पड़ा। हालांकि मन्त्रिमण्डल को लेकर कई जगह असन्तोष भी दिख रहा है। लेकिन संभागीय संतुलन के आधार पर मन्त्रिमण्डल तय किया गया है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कांग्रेस सिद्धांतवादी पार्टी है जिसमें संगठनात्मक अनुशासन सर्वोपरि है।वहीं आगामी लोकसभा चुनाव में इसका खासा असर देखने को मिल सकता है जिसमें कांग्रेस के लिए नुकसान के संकेत मिलने शुरु हो गए हैं।
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