विश्वबंधु शर्मा के फेसबुक वाल से साभार
जशपुर(पत्रवार्ता) चुनाव में इस बार अजब रंग देखने को मिला। एकतरफ जब तालाब के सारे फूल मुरझा रहे थे तो दूसरी तरफ युवा सिटी बजाकर झाड़ू लगाते हुए सफाई अभियान में जुटे थे। कुछ किसान किराए के ट्रेक्टर से बंजर जमीन में फसल उगाने में जुटे रहे,जिन्हें यकीन था कि उनपर अब हुक्मरानों का हाथ नहीं रहा। एक ने तो हाथी में सफर की शुरुआत की थी जो सायकल में उतर आया। सायकल पकड़ना भी मजबूरी थी क्योंकि एक तो पेट्रोल के भाव आसमान छू रहे थे, वहीं दो लीटर के पेट्रोल पर्ची के लिये महाभारत हो रहा था। जब जिले की नदियां सूखने लगी तो एक बड़ा वर्ग बाल्टी भर भर के सबकी उमीदों में पानी फेरने लगा...इस उहापोह में जनता खुद कन्फ्यूज हो गई कि अगले चुनाव में वो किसे वादा खिलाफी का आरोप लगाकर कोसेंगे...?
इधर न जाने किसने..? लोकतंत्र का महापर्व
एक त्योहार की तरह मनाये जाने का
इस कदर माहौल बना दिया कि मतदान
केंद्र मंडपों में तब्दील हो गए। कुछ ने
दूल्हों के साथ खुद को सहबाला बताकर
खूब सेल्फी लिया तो अधिकांश नाखून
में महावर पुतवाकर अपनी रिश्तेदारी
भी सुनिश्चित कर ली। दुल्हन किसको
मिलेगी अभी तय नहीं हुआ है.।
जशपुरिया संस्कृति में हर त्योहार का बासी मूल त्योहार से कहीं अधिक उत्साह भरा और रोमांच लिए होता है...होली हो, दिवाली या फिर चुनाव ही क्यों न हो...। वोट हो गया. अब परम्परा है तो बासी भी लोग खूब मना रहे हैं। आज इसको जीता रहे हैं तो कल उसको... धुसका के होटलों में इन दिनों भीड़ भी खूब देखने को मिल रही है और राजनीतिक चर्चा भी खूब हो रही है। जशपुर का कोई भी त्योहार धुसका के बिना अधूरा है.......।
लोकतंत्र के इस महासंग्राम में यदि किसी खिलाड़ी के जीत हार का आपको मतगणना पूर्व परिणाम और सही विश्लेषण चाहिए तो आप किसी धुसके के दुकान में चले जाइये....
विश्वास मानिए सारे चैनल,
अखबार,सर्वे अलना-फलना
एग्जेट पोल से कहीं बेहतर 101%
सटीक परिणाम आपको धुसका
के दुकान में मिल जाएगा।
जशपुरिया धुसका और जशपुर की राजनीति में बहुत समानता है....
जशपुर बस स्टैंड से लेकर मनोरा बस स्टैंड मोड़ तक एक दर्जन भर झोपड़ीनुमा होटल में जो स्वाद मिलेगा....कसम से बड़े बड़े 5 स्टार होटलों में भी दुर्लभ है..। उसपर मिर्ची की चटनी ...आह मजा ही आ जाए। इसके बावजूद तला हुआ मिर्च जैसे धनमिर्ची का कोई ताजा फेसबुक स्टेटस हो..। किसी को बड़ा टेस्टी लगता है तो किसी को लहर जाता है. . ..।
जब से मोदी प्रधानमंत्री बने और रमन छत्तीसगढ़ का राजपाठ सम्हाले तो रंक भी राजा हो गए। इस बदलाव का सबसे बड़ा प्रभाव धुसके पर पड़ा, धुसका का स्वाद ही बदल गया। बताते हैं सील लोढ़े में पिसे जाने वाला मसाला अब मिक्सी मशीन में पिसा जाने लगा है, इसी कारण धुसके का स्वाद बदल गया है। स्वाद इधर उधर हुआ तो लोग मशीन को दोष देते हैं...कहते हैं हाथ से पीसा वाले का स्वाद अलग होता है।
मैं तो कहता हूँ कि विकास को
धुसके के होटल से समझना चाहिये।
विकास का यही पैमाना हो कि कांग्रेस
के जमाने मे क्या था और आज
भाजपा युग मे धुसका विक्रेताओं
की क्या स्थिति है...
मेरा मानना है अगर विकास और सरकारों की कार्यप्रणाली को यदि आप सही में समझना चाहते हैं तो एक बार किसी धुसके के झोपड़ीनुमा होटल में जरूर जाएं।
11 लाख की चमचमाती कार में लिफ्ट लेकर जब मैं कुछ बुद्धिजीवियों के साथ एक धुसके कि दुकान पर गया तो बड़ी सीख मिली। एक तो बुद्धिजीवियों ने मुझ जैसे नौसीखिये को उसी तरह कार चलाने दे दिया, जैसे राजनीतिक दल किसी को भी विधायक की टिकिट दे देते हैं।
दूसरा यह कि होटल चला रहे युवक से जब मैं खर टाइप के धुसके का स्वाद लेते हुए पूछा कि भैया कौन जीत रहा है.....
भरे मन से होटल संचालक ने
प्लेट में मिर्च की चटनी डालते
हुए बोला भैया सभी नेता जीत रहे हैं,
हार तो जनता की होती है..जिस दिन
जनता जीत जाएगी चुनाव की
जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
कड़ाही से धुसके निकालते हुए संचालक ने हमारे वहां से निकलते हुए कह ही दिया...कि मुझे तो लगता है साहब इसबार भी जनता फिर हार गई....
अनिकेत
इस पोस्ट पर सोशल मिडिया में जमकर बहस छिड़ी हुई है देखिये किसने क्या कहा
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