... आज का सद्चिन्तन : "जानें इस महामंत्र के 24 अक्षरों का रहस्य, मन में उठने वाली हर सकारात्मक इच्छाएं होती हैं पूरी,शंखस्मृति में इसे पापों का नाश करने वाला पवित्रता धारण करने का मंत्र बताया गया है,यह तारक मंत्र भी है।

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आज का सद्चिन्तन : "जानें इस महामंत्र के 24 अक्षरों का रहस्य, मन में उठने वाली हर सकारात्मक इच्छाएं होती हैं पूरी,शंखस्मृति में इसे पापों का नाश करने वाला पवित्रता धारण करने का मंत्र बताया गया है,यह तारक मंत्र भी है।

भगवान् का प्रेम जीवन के सत्य को देखता है। भगवान का प्रेम मनुष्य के शिव को देखता है। भगवान का प्रेम आपके जीवन के सौंदर्य को देखता है। आप परमात्मा की अभिव्यक्ति हैं अतः उनके हो जाने में उनके गुणों का उभार आपके जीवन में होना स्वाभाविक है। गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, ताप्ती, नर्मदा, गोदावरी आदि नदियाँ तब तक स्थल खण्ड में इधर−उधर विचरण करती रहती हैं जब तक उन्हें नदियों के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जाता। उनकी शक्ति और सामर्थ्य की तब तक उतनी ही होती है किन्तु जब वे सब मिलकर एक स्थान में केन्द्रीभूत हो जाती हैं तो उनका अस्तित्व समुद्र जितना विशाल, रत्नाकर जैसा सम्पन्न, सिन्धु-सा अनन्त बन जाता है। अपने आपको परमात्मा में समर्पित कर देने पर मनुष्य का जीवन भी वैसा ही अनन्त−विशाल, सत्य, शिव एवं सुन्दर हो जाता है। उन्हें पाकर मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता है। 

ईसा, मंसूर, शंकराचार्य, रामकृष्ण, दयानन्द तथा अरविन्द आदि अनेकों ईश्वर परायण देवदूत हैं। ईश्वर की कृपा के फलस्वरूप उन्होंने सामान्य व्यक्तियों से उच्चतर सिद्धियाँ प्राप्त कीं। यह ईश्वर उपासना का अर्थ एकाँगी लाभ उठाना रहा होता तो इन महापुरुषों ने भी या तो किसी एक स्थान में बैठकर समाधि से ली होती या भौतिक सुखों के लिये बड़े से बड़े साधन एकत्र कर शेष जीवन सुखोपभोग में बिताते। पर उनमें से किसी ने भी ऐसा नहीं किया। उन्होंने अन्त में मानव मात्र की ही उपासना की। सिद्धि से उन्हें सन्तोष नहीं हुआ तो लौटकर वे फिर समाज में आये और प्राणियों की सेवा को अपनी उपासना का आधार बनाया। 

 “परमात्मा केवल एकान्तवासी को मिलते हैं और अध्यात्म का अर्थ घरबार छोड़कर योगी हो जाना है” यदि ऐसा अर्थ लगाया जाय तो फिर हमारे ऋषियों की सारी व्यवस्था एवं भारतीय दर्शन की सारी मान्यता ही गलत हो जायेगी। 

आज के सद्चिन्तन में गायत्री महामंत्र के महात्म्य और उसके वैज्ञानिक प्रभावों को समझेंगे।

एक दो नहीं सैकड़ों मनोकामनाएं पूरी करता है ये महामंत्र, इसे जपने वाला कभी नहीं होता असफल !              

ब्रह्मा, विष्णु, शिव से लेकर आधुनिक काल तक ऋषि-मुनियों, साधु-महात्माओं और अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्यों ने गायत्री मन्त्र का आश्रय लिया है । यजुर्वेद व सामवेद का यह महामन्त्र प्रमुख मंत्र माना गया हैं, लेकिन अन्य सभी वेदों भी में किसी-न-किसी संदर्भ में गायत्री का बार-बार उल्लेख है । त्रेता युग में गायत्री के सिद्ध ऋषि एवं भगवान श्रीराम के गुरु ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के बाद इस युग के ऋषि वेदमूर्ति आचार्य श्रीराम शर्मा ने गायत्री मंत्र व गायत्री साधना, गायत्री यज्ञ को जन जन के लिए सर्व सुलभ कर जाती पाती के भेद भाव को खत्म करने का अद्वतिय कार्य किया जो भूतो न भविष्य हैं ।

गायत्री का शाब्दिक अर्थ है–’गायत् त्रायते’ अर्थात् गाने वाले का त्राण करने वाली । गायत्री मन्त्र गायत्री छन्द में रचा गया अत्यन्त प्रसिद्ध मन्त्र है । इसके देवता सविता हैं और ऋषि विश्वामित्र हैं ।

 मन्त्र : 

।। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं  ॐ भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ॐ।।

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

ॐ व भू: भुव: स्व: का अर्थ है- गायत्री मन्त्र से पहले ॐ लगाने का विधान है । ॐ अर्थात प्रणव, और प्रणव परब्रह्म परमात्मा का नाम है । ‘ओम’ के अ+उ+म् इन तीन अक्षरों को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप माना गया है । गायत्री मन्त्र से पहले ॐ के बाद भू: भुव: स्व: लगाकर ही मन्त्र का जप करने का विधान हैं, क्योंकि ये गायत्री मन्त्र के बीज हैं । बीजमन्त्र का जप करने से ही साधना सफल होती है ।

अथर्ववेद में वेदमाता गायत्री की स्तुति की गयी है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है ।

सुबह 4 से 6 बजे तक नियमित रूप से गायत्री मन्त्र का जप करने से अद्भूत बुद्धि का विकास होता हैं, विवेक का जागरण होता हैं, सैकड़ों मनोकामनाएं स्वतः ही धीरे धीरे पूरी होने के साथ जपकर्ता को अंत में ब्रह्मलोक में स्थान प्राप्त हो जाता हैं । 

जब सूर्योदय होने वाला हो उससे ठीक आधे घंटे पहले से उदय होने के 10 मिनट बाद तक खड़े होकर गायत्री महामंत्र का जप करने से अद्वतीय अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होने के अनेक सिद्धिया भी प्राप्त हो जाती हैं । संध्याकाल में गायत्री का जप बैठकर तब तक करें जब तक तारे न दीख जाएं । नियमित गायत्री महामन्त्र का जप एक हजार बार से मन में उठने वाली हर सकारात्मक इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

शंखस्मृति में कहा गया हैं-

गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी ।

गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम् ।।

अर्थात्–‘गायत्री वेदों की जननी है । गायत्री पापों का नाश करने वाली है । गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथिवी पर नहीं है ।

कुल चौबीस अक्षरों से मिलकर बना हैं गायत्री महामंत्र

गायत्री मन्त्र में कुल चौबीस अक्षर हैं । ऋषियों ने इन अक्षरों में बीजरूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां तथा चौबीस सिद्धियां कहा जाता है । गायन्त्री मन्त्र के चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं । उनकी चौबीस चैतन्य शक्तियां हैं । 

गायत्री मन्त्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं । गायत्री मन्त्र की उपासना करने से उन 24 शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं । जाने गायत्री की शक्तियों के द्वारा क्या-क्या लाभ मिलते हैं-

1- सफलता शक्ति- कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि ।

2- पराक्रम शक्ति- पराक्रम, वीरता, शत्रुनाश, आतंक-आक्रमण से रक्षा ।

3- पालन शक्ति- प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि ।

4- कल्याण शक्ति- अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चयता, आत्मपरायणता ।

5- योग शक्ति- कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्मनिष्ठा ।

6- प्रेम शक्ति- प्रेम-दृष्टि, द्वेषभाव की समाप्ति ।

7- धन शक्ति- धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति ।

8- तेज शक्ति- उष्णता, प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना ।

9- रक्षा शक्ति- रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत-प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा ।

10- बुद्धि शक्ति- मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता ।

11- दमन शक्ति- विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार ।

12- निष्ठा शक्ति- कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य-निष्ठा ।

13- धारण शक्ति- गम्भीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य ।

14- प्राण शक्ति- आरोग्य-वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन ।

15- मर्यादा शक्ति- तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादापालन, मैत्री, सौम्यता, संयम ।

16- तप शक्ति- निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता ।

17- शान्ति शक्ति- उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार ।

18- काल शक्तिृ- मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता ।

19- उत्पादक शक्ति- संतानवृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि ।

20- रस शक्ति- भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दयाभावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य ।

21- आदर्श शक्ति- महत्वकांक्षा-वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्जवल चरित्र, पथ-प्रदर्शक कार्यशैली ।

22- साहस शक्ति- उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ ।

23- विवेक शक्ति- उज्जवल कीर्ति, आत्म-सन्तोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत्-असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार ।

24- सेवा शक्ति- लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म-शान्ति, परदु:ख-निवारण ।

गायत्री मन्त्र के साधक को उपरोक्त शक्तियां स्वतः मिल जाती हैं । गायत्री मंत्र दूसरा नाम ‘तारक मन्त्र’ भी है । तारक अर्थात् तैराकर पार निकाल देने वाली शक्ति ।

आप भी गायत्री महामंत्र सुने कहें औरों को प्रेरित करें अपना जीवन आध्यात्मिक बनाएं।

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