- By Jitendra
जब राष्ट्रकवि ने जेल में की लिखी पुष्प की अभिलाषा
बिलासपुर(पत्रवार्ता.कॉम) आजाद भारत की संकल्पना को साकार करने में वैचारिक क्रांति का अहम योगदान रहा है।सत्याग्रही के तौर पर साहित्यकार और कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जमकर राष्ट्रप्रेम का अलख जगाया।
बिलासपुर का सेंट्रल जेल भी ऐसे ही एक राष्ट्रकवि व उनकी उस रचना का साक्षी है जिसने ऐसी वैचारिक क्रांति की जो हमेशा के लिए अमर हो गयी।
राष्ट्रकवि पं माखनलाल चतुर्वेदी ने सत्याग्रही
के तौर पर बिलासपुर सेंट्रल जेल में रहते हुए
अमर कविता "पुष्प की अभिलाषा" का लेखन
किया जो आज देश के हर वर्ग में
राष्ट्रप्रेम का अलग जगा रही है। जेल में आज
भी उस पल और उस व्यक्तित्व को भारतीय
आत्मा का नाम देकर जीवंत रखा गया है।
वह दौर था जब अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ देश मुखर हो रहा था,आजाद भारत के लिए जंग छिड़ गयी थी। अंग्रेजो ने देश भर के आंदोलनकारियो को जेल मे बंद करना शुरू कर दिया लेकिन जेल के अंदर भी अंग्रेजी हुकुमत भारत मां के वीर सपूतों के हौसले को डिगा नही सकी और जेल के अंदर से ही अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ क्रांति पनपने लगी।
इसका एक गवाह बना बिलासपुर का केंद्रीय जेल
जहां सैकडो देश भक्तो को अंग्रेजो ने बंदी बना रखा
था। जिसमें एक प्रसिद्ध राष्ट्रकवि और सत्याग्रही
पंडित माखन लाल चतुर्वेदी भी रहे
जिन्हें अंग्रेजो ने 5 जुलाई सन 1921
से लेकर 1 मार्च 1922 तक कैद में रखा।
इस दौरान अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ बढ़ते आक्रोश और मातृभूमि की आजादी के लिए पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने कैद में रहते हुए कलम को अपना हथियार बनाया और वैचारिक क्रांति की शुरूवात की।
18 फरवरी 1922 को बैरक नंबर 9 मे रहकर उन्होंने एक ऐसी कविता की रचना की जिसने समुचे क्रांति मे देश प्रेम का जज्बा पैदा कर वीर सपुतों की फौज खडी कर दी। " पुष्प की अभिलाषा" शीर्षक की ये कविता जिसमें फूल के माध्यम से कवि ने युवाओं में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत करने का प्रयास किया।
जिसके बाद ऐसी वैचारिक क्रांति हुई जो स्वतन्त्रा प्राप्ति की राह मे सहायक साबित हुई। आज भी पंडित माखन लाल चतुर्वेदी की यादों को केंद्रीय जेल मे संजो कर रखा गया है। जो एक भारतीय आत्मा के नाम से जेल मे निरुद्ध कैदियो और बंदियो को अच्छे कर्म करने और राष्ट्र प्रेम के लिए प्रेरित करते हैं।
"चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गुथा जाउं,
चाह नहीं प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाउं,
मुझे तोड लेना बनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ पर जाएं वीर अनेक"
" माखन लाल चतुर्वेदी की जेल मे रचित ये कविता आज भी बिलासपुर केंद्रीय जेल मे जीवंत है। जो क्रांतिकाल के अगाध राष्ट्रप्रेम का निरंतर एहसास कराता है। वही दूसरे रुप मे आज समाज मे भी ये कविता पाठ्य पुस्तको के माध्यम से बच्चो और बडो मे राष्ट्र प्रेम का अलख जगा रही है। विशेष रुप से राष्ट्र कवि पंडित माखन लाल चतुर्वेदी की इस कविता को जानकार देश प्रेम की पराकाष्ठा मानते है। जिसमे फूल के माध्यम से देवी देवताओ से भी ज्यादा मातृभुमि के प्रेम और बलिदान को बताया गया है।
धन्य है वो लोग, धन्य है वो धरा, जिसने ऐसे राष्ट्रप्रेमियों को जन्म दिया जिन्होने अपनी रचनाओ के माध्यम से लोगो मे देश भक्ति का ज्वार पैदा कर एक वैचारिक क्रांति की। जिसका गवाह बना छत्तीसगढ़ मे बिलासपुर का केंद्रीय जेल, जहा आज भी ऐसे राष्ट्रप्रेमी को "एक भारतीय आत्मा" के रुप मे जीवंत रखा गया है।
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