बिलासपुर(पत्रवार्ता.कॉम)हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पीआईएल फाइल करने वालों को सुरक्षा निधि के रूप में पांच हज़ार का शुल्क जमा करने की बाध्यता को खत्म करने की मांग की गयी है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट देश में इकलौता है जहां जनहित याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ता को पांच हज़ार सुरक्षा निधि जमा करनी पड़ती है। याचिकाकर्ता व वकील अभिषेक पांडे ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट रूल्स 2007 के नियम 81 को चुनौती देते हुए शुल्क माफ करने याचिका दायर की है। चीफ जस्टिस के डीबी में मामले की सुनवाई हुई। डीबी ने रजिस्ट्रार जनरल व विधि विधाई विभाग से जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता के वकील ने पटना, जम्मू कश्मीर, हरियाणा सहित देश के अन्य हाईकोर्ट का उदाहरण पेश करते हुए कहा है कि ये ऐसे हाईकोर्ट है जहां सर्वाधिक पीआईएल दायर होते हैं, यहां शुल्क नहीं लिया जाता है। याचिका के अनुसार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट रूल्स 2007 में संशोधन करते हुए नियम 81 के अंतर्गत जनहित याचिका में शुल्क का प्रावधान रखा गया है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी वर्ग की बहुलता है। लिहाजा पीआईएल में शुल्क निर्धारण करने से आर्थिक बोझ बढ़ेगा। याचिका में इस बात का हवाला दिया गया है कि वर्ष 2000 में राज्य निर्माण के साथ ही केंद्र सरकार ने बिलासपुर में हाईकोर्ट की स्थापना की थी, उस वक्त जनहित याचिका दायर करने वालों से शुल्क नहीं लिया जाता था। सामाजिक संस्थाओं से लेकर अन्य लोगों ने तब उचित कारणों का हवाला देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने निर्णय भी पारित किया है जो मील का पत्थर साबित हो रहा है। याचिकाकर्ता ने पीआईएल फाइल करने वालों को सुरक्षा निधि के रूप में पांच हज़ार का शुल्क जमा करने की बाध्यता को खत्म करने की मांग की है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट में लागू व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है, जहां पीआईएल दायर करने पर शुल्क जमा नहीं करना पड़ता। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दायर होने वाली अलग-अलग याचिकाओं का भी जिक्र किया है। रिट याचिका, क्रिमिनल अपील व जमानत के लिए अपील सहित अन्य याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा निधि के रूप मे 150 से 200 रुपये जमा करना पड़ता है।
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