जशपुर,टीम पत्रवार्ता,28 दिसंबर 2022
BY योगेश थवाईत
जब कोई परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात अपने बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हो तो सवाल सीधे सरकार पर खड़े होते हैं।सवाल उस सिस्टम पर खड़े होते हैं जिसे सरकारी सिस्टम कहा जाता है।एक ओर जहां सरकार की योजना गरीबों को मकान देकर उन्हें बसाने की हैं वहीं दूसरी ओर सरकार के नुमाइंदे परिवारों को बेघर कर अपनी ही सरकार की फजीहत कराने में लगे हैं।जशपुर के बगीचा में प्रशासन की ऐसी अमानवीयता देखने को मिली कि पूरा परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात न्याय के इंतजार में खुले आसमान के नीचे पड़ा रहा और किसी ने उनकी कोई सुध नहीं ली।
दरअसल यह मामला है जशपुर जिले के बगीचा का जहां सुखबासुपारा में रकबीर अपनी पत्नी व बेटी बच्चों के साथ लम्बे समय से निवास कर रहा था।घर बनाते वक्त उसके पैर की हड्डी टूट गई और अधूरा घर छोड़कर वह अपने इलाज के लिए दमगड़ा चला गया।इस बीच उस जमीन पर बने अधूरे घर को पूरा कर ग्राम पंचायत सचिव करमचंद व उसके परिवार ने अपनी जमीन का हवाला देकर उस जमीन पर कब्जा कर लिया।
इस दौरान रकबीर का पूरा परिवार दर दर न्याय के लिए भटकता रहा पर उनकी किसी ने सुध नहीं ली।मंगलवार को रकबीर अपने परिवार के साथ अपने घर मे घुस गया।और खाना बनाने के दौरान ग्राम सचिव अपने परिवार के साथ वहां पंहुचा और अपना मालिकाना हक जताते हुए रकबीर के परिवार को घर से बाहर निकालते हुए उनका सारा सामान घर से बाहर फेंक दिया।इस दौरान पुलिस प्रशासन व नगरीय प्रशासन के लोग मौके पर उपस्थित थे इसके बावजुद पीड़ित परिवार की किसी ने सुध नहीं ली।उल्टे पुलिस ने उन्हें डराया और घर से बाहर होने का आदेश दे दिया।
जिसके बाद पूरा परिवार पूरी रात खुले आसमान के नीचे पड़ा रहा।2 छोटे बच्चे,अक्षम पिता अपनी बेटियों के साथ चूल्हा जलाकर पूरी रात न्याय का इतंजार करते रहे पर नाकारा सिस्टम ने उनकी एक नहीं सुनी।
रकबीर का परिवार लगभग 16 वर्षों से उसी जमीन पर निवास कर रहा है।जिसका दस्तावेज भी उनके पास है।बेहद गरीबी की हालत में केस मुकदमा लड़ना उनके बस की बात नहीं।ऐसे में पीड़ित परिवार के साथ हुई अमानवीयता पर पूरा सिस्टम मूकदर्शक बना बैठा है।वहीं करमचंद की माँ का दावा है कि जमीन उनके पति जगरोपन की है जबकि जगरोपन ने उक्त जमीन का पहले ही सौदा कर रकबीर को बेच दिया था।मामले में इस प्रकार किसी परिवार को भरे ठंड में बेघर करना व्यवहारिक नहीं।
बहरहाल न्याय की आस में अब तक पूरा परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है, जिनके सर पर न तो छत है और न ही उनके पास रहने के लिए कोई घर।ऐसे में प्रशासनिक उदासीनता के साथ सारा सरकारी सिस्टम सवालों के घेरे में नजर आ रहा है।मामले में जब सीएमओ को फोन लगाया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
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