बिलासपुर 07अगस्त2019 (पत्रवार्ता) वर्ष 2006 में पुलिस थाने से 50 मीटर दूर स्थित एर्राबोर कैंप में 32 आदिवासियों की नक्सलियों द्वारा हत्या करने के मामले में जांच रिपोर्ट उजागर करने व दोषियों पर कार्रवाई के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस पर कोर्ट ने जांच रिपोर्ट के संबंध में जानकारी मांगी है।
दरअसल 16 जुलाई 2006 की रात एर्राबोर में नक्सली पुलिस थाने से 50 मीटर की दूरी में स्थित शिविर में घुस गए और 32 आदिवासियों की हत्या कर दी।
बस्तर में लाल आतंक का विरोध करने वाले ग्रामीण जान बचाने के लिए अपना घर, मवेशी, खेती छोड़कर सरकार द्वारा बनाए गए एर्राबोर शिविर में रह रहे थे। शिविर में रहने वाले ग्रामीणों को नक्सलियों से सुरक्षा दिलाने की जिम्मेदारी सरकार व पुलिस की थी।
राज्य शासन ने नरसंहार की सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराई। 29 जनवरी 2007 को जांच पूरी की गई। जांच रिपोर्ट के सार्वजनिक नहीं होने पर नारायणस्वामी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
इसमें कहा गया कि मामले में पुलिस की ओर से गंभीर चूक की गई है। राहत शिविर में रहने वालों को संरक्षण देने में राज्य सरकार विफल रही। याचिका में मामले की विस्तृत जांच कर यह पता लगाने की मांग की गई है कि क्या पुलिस अधिकारी की गलती थी, यदि अधिकारियों की गलती है तो उनकी पहचान कर उन पर जवाबदेही तय करने और मृतकों के परिवार वालों को उचित मुआवजा दिलाने की मांग की गई है।
मामले में चीफ जस्टिस पी आर रामचंद्र मेनन और पीपी साहू की डीबी में सुनवाई हुई। कोर्ट ने पाया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराना उचित है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मामले का विशिष्ट पहलू जैसा कि, क्या संरक्षण और सुरक्षा देने में पुलिस की असफलता थी।
यदि ऐसा है तो इस नरसंहार के लिए कौन अधिकारी और अधीनस्थ इसके लिए जिम्मेदार हैं। इस कार्रवाई के लिए समिति का पुनर्गठन किया जाना था। कोर्ट ने इस संबंध में रजिस्ट्रार जनरल हाईकोर्ट को मामले की स्थिति,समिति की रिपोर्ट कोई रिकॉर्ड हो तो उसे प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
यदि ऐसा है तो इस नरसंहार के लिए कौन अधिकारी और अधीनस्थ इसके लिए जिम्मेदार हैं। इस कार्रवाई के लिए समिति का पुनर्गठन किया जाना था। कोर्ट ने इस संबंध में रजिस्ट्रार जनरल हाईकोर्ट को मामले की स्थिति,समिति की रिपोर्ट कोई रिकॉर्ड हो तो उसे प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
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