... Big ब्रेकिंग : जनजातीय सुरक्षा मंच की प्रदेशव्यापी डीलिस्टिंग रैली से मची खलबली, ईसाई आदिवासी महासभा आया सामने, CM की घोषणा पर जताई आपत्ति,दो टूक शब्दों में दिया जवाब कहा "डीलिस्टिंग आदिवासियों के लिए भयावह,कार्तिक उरांव आदिवासियों के सर्वमान्य नेता नहीं,CM को लिखा पत्र,रखी ये मांग।

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Big ब्रेकिंग : जनजातीय सुरक्षा मंच की प्रदेशव्यापी डीलिस्टिंग रैली से मची खलबली, ईसाई आदिवासी महासभा आया सामने, CM की घोषणा पर जताई आपत्ति,दो टूक शब्दों में दिया जवाब कहा "डीलिस्टिंग आदिवासियों के लिए भयावह,कार्तिक उरांव आदिवासियों के सर्वमान्य नेता नहीं,CM को लिखा पत्र,रखी ये मांग।

रायपुर,टीम पत्रवार्ता,21 अप्रैल 2023

BY योगेश थवाईत

डीलिस्टिंग का मुद्दा एक बार फिर से गरमाता नजर आ रहा है।पिछले 16 अप्रैल को जनजातीय सुरक्षा मंच के नेतृत्व में रायपुर में डीलिस्टिंग की मांग को लेकर महारैली का आयोजन किया गया था जिसमें प्रदेश व केंद्र सरकार को मंच ने सीधी चेतावानी देते हुए डीलिस्टिंग का कानून जल्द पास करने की मांग की गई।इधर इस महारैली के बाद ईसाई आदिवासी महासभा डीलिस्टिंग के विरोध में सामने आ गया है।उन्होंने सीएम से पत्र लिखकर अपनी मांगों को रखा है।

देखिए डीलिस्टिंग की महारैली

ईसाई आदिवासी महासभा द्वारा सीएम के नाम लिखे गए पत्र में अम्बिकापुर स्थित आकाशवाणी चौक का नाम बाबा कार्तिक उराँव चौक नामकरण पर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए कारण भी स्पष्ट किया गया है।

उल्लेखनीय है कि 6 अप्रैल को पीजी कॉलेज मैदान अम्बिकापुर में आयोजित सरहुल कार्यक्रम में आमसभा को सम्बोधित करते हुए सीएम भूपेश बघेल द्वारा अम्बिकापुर स्थित आकाशवाणी चौक का नामकरण बाबा कार्तिक उराँव के नाम पर किए जाने की घोषणा की गई थी।जिसपर ईसाई आदिवासी महासभा ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।

सीएम को लिखे गए पत्र में अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए ईसाई आदिवासी महासभा में लिखा है कि कार्तिक उराँव एक उच्च शिक्षित, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, सांसद, केन्द्रीय मंत्रीमण्डल के सदस्य, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के संस्थापक थे, जिस कारण आदिवासियों का एक बड़ा तबका उन्हें महापुरुष मानता है। लेकिन वे आदिवासियों के सर्वमान्य व्यक्तित्व नहीं हैं।

कार्तिक उरांव के नाम पर आपत्ति

कार्तिक उराँव ने संसद सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल में 1967 में डी- लिस्टिंग का संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 1967 तैयार कर संसद में प्रस्तुत किया था. इस प्रस्ताव के अनुसार ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने का प्रावधान प्रस्तावित किया गया था। उसी डी-लिस्टिंग की माँग वर्तमान में जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा की जा रही है।

डीलिस्टिंग आदिवासियों के लिए भयावह 

आवेदन में बताया गया है कि डीलिस्टिंग की मांग अगर पूरी होती है तो उसका परिणाम अदिवासियों के लिए भयावह होगा।पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र समाप्त हो जाएगा,परिसीमन में विधानसभा एवं लोकसभा के लिए आदिवासियों की आरक्षित सीट अनारक्षित हो जाएगी, पेसा कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे, आदिवासियों की भूमि सुरक्षा का कानून शिथिल हो जाएगा और आदिवासी समाज हाशिए में चला जाएगा।

बहरहाल आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में डीलिस्टिंग का मुद्दा हिन्दू व ईसाई मतदाताओं को सीधा प्रभावित करता नजर आ रहा है।ईसाई आदिवासी महासभा जहां कॉंग्रेस को खासा प्रभावित करेगा वहीं जनजातीय सुरक्षा मंच हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास करता नजर आ रहा है।ऐसे में डीलिस्टिंग का मुद्दा प्रदेश की कॉंग्रेस सरकार के लिए कई चुनौतियां लेकर आ रहा है।

देखिए वीडियो

डीलिस्टिंग महारैली



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