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News@9 पत्रवार्ता : 61 की उम्र में जवानी सी फुर्ती,पलक झपकते पेड़ से चढ़कर उतर जाते हैं जशपुर के "बाबा नागनाथ",5 वर्षों से हैं निर्वस्त्र,जंगल की कोबरा गुफा को बनाया अपना आशियाना,सतत परिश्रम से संवार दिया घना जंगल,प्रकृति के साथ प्रेम की अद्भुत मिसाल,पढ़ें पूरी खबर फुलजेंस एक्का से बाबा नागनाथ बनने की पूरी स्टोरी सिर्फ पत्रवार्ता पर


जशपुर,टीम पत्रवार्ता,08 जनवरी 2023

BY  योगेश थवाईत

यूं तो जल,जंगल,जमीन के संरक्षण को लेकर सड़क पर आपने लोगों को आवाज बुलंद करते देखा होगा।इस बार जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड के जामपानी जंगल में निवास करने वाले बाबा नागनाथ ने अपने अथक परिश्रम से  पूरे जंगल को संरक्षित करने का अद्भुत मिसाल पेश किया है।

उल्लेखनीय है कि बाबा नागनाथ मूलतः बगीचा विकासखंड के शरबकोम्बो के बथानटोली के रहने वाले हैं।जो पिछले 5 वर्षों से निर्वस्त्र होकर जामटोली के तुर्रापानी ध्वजाटोंगरी जंगल में गुफा में निवास कर अपनी साधना कर रहे हैं।61 वर्ष के उम्र में भी उनकी फुर्ती जवानी जैसी है। आज भी ऊँचे पेड़ों पर पलक झपकते चढ़ना उतरना उनके लिए खेल जैसा है। 

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आध्यात्मिक साधना से सृजित ऊर्जा का उपयोग वनों के संरक्षण में

बाबा नागनाथ ने बताया कि उनकी 61 साल की उम्र है इसके बावजूद उनका जज्बा जवानों जैसा है।अपनी ऊर्जा के उपयोग वे जल,जंगल,जमीन के संरक्षण के लिए करते हैं।जामटोली जंगल में श्रमदान कर उन्होंने लगभग 1 किलोमीटर लंबी सड़क बना दी है।इसके साथ ही पिछले चार वर्षों में यहां जंगल में पेड़ों की कटाई व आग लगने की घटनाओं पर उन्होंने पूर्णतःअंकुश लगाया है।जिसके कारण शाहीडाँड़ वन परिक्षेत्र के जामपानी जंगल आज हरे भरे होने के साथ घने हो गए हैं।यहां पेड़ों की कटाई रोकने के साथ उन्होंने जल संरक्षण के लिए कुंड भी बनाया है जहां लोगों को शुद्ध जल प्राप्त होता है।

ऐसे बने बाबा नागनाथ

बाबा नागनाथ का नाम पहले फुलजेन्स एक्का था।लगभग 14 वर्ष पहले उन्होंने अपना आध्यात्मिक सफर अहमदमाद से शुरू किया।इसके बाद जब 2018 में वे अपने घर बथानटोली आए तो जल,जंगल,जमीन के प्रति उनका रुझान बढ़ने लगा और घर का त्याग करके उन्होंने जंगल की गूफ़ा को ही उन्होंने अपना आशियाना बना लिया।जामटोली जंगल में कोबरा कैव में ये निवास करते हैं।जहां प्रकृति के बीच अपनी आध्यात्मिक साधना के साथ जल,जंगल,जमीन के सतत संरक्षण का कार्य बाबा नागनाथ कर रहे हैं।

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वैश्विक स्तर  की अंग्रेजी सिखाने  का दावा 

बाबा शुरू से ही मेधावी रहे।आज भी फर्राटेदार अंग्रेजी में उनकी पकड़ है।13 साल तक गांव में रहे फिर जोगबहला मिशन स्कूल से आठवीं की पढ़ाई की।1983 में सेंट जेवियर्स अम्बिकापुर से मैट्रिक पास करके वे कजरा मिशन स्कूल डोंबिसको में एक साल टीचर रहे।1986 में बीएससी के लिए इंदौर गए जहां रूम नहीं मिला तो वे वापस आ गए फिर रायपुर सिविल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिए और चार साल पढ़ने के बाद वे अहमदमाद चले गए।रायपुर व अहमदाबाद में वहां बच्चों को अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ाते थे।

पहले गए थे पादरी बनने

बाबा ने पत्रवार्ता को बताया कि वे मैट्रिक के बाद पादरी बनने की भी पढ़ाई कर रहे थे। एक साल में ही उनके सवाल जवाब से परेशान होकर उनको भगा दिया गया।वे शुरु  से क्रांतिकारी बातें करने के साथ,धर्म,जाति से ऊपर प्रकृति की उपासना के साथ ऊर्जाओं के संरक्षण पर बात करते थे। आध्यात्मिक मार्ग में उन्होंने लगभग 14 वर्षों तक ज्ञान प्राप्त किया अभ्यास शुरु  किया।कई दार्शनिक धर्म गुरुओं का उन्होंने अध्ययन किया।और अंततः प्रकृति के करीब पंहुचने का मार्ग प्रशस्त हुआ।  

4 वर्षों से हैं निर्वस्त्र दिगंबर 

निर्वस्त्र होकर कोई जंगल की गुफा में रहने लगे तो निश्चित ही आप अचंभित होंगे इतना ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षित फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले फुलजेन्स एक्का ने न केवल घर परिवार का त्याग कर दिया बल्कि सांसारिक मोह माया का त्याग करके वे जंगल की गुफा में रहते हुए अपने आध्यात्मिक सफर की शुरुआत करने में लग गए।लगभग 5 वर्षो की साधना के बाद वे अब बाबा नागनाथ बन गए हैं।प्रकृति के बीच रहकर अपनी प्रकृति उपासना के साथ वे सतत जल,जंगल,जमीन के संरक्षण व संवर्धन में लगे हुए हैं।

छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के बगीचा विकासखंड में शरबकोम्बो बथानटोली के रहने वाले फुलजेन्स फिलहाल जामपानी के तुर्रापानी ध्वजा टोंगरी के जंगलों में एक गुफा में निर्वस्त्र रहते हैं।यहां अपनी साधना से पूरे क्षेत्र को उर्जित करने में लगे हुए हैं।लगभग 4 वर्षों से यहां का जंगल सुरक्षित है यहां जंगलों में उन्होंने आग लगने नहीं दी।आज इसका परिणाम है कि यहां के वन हरे भरे हैं।बाबा नागनाथ से बात करते हुए उन्होंने कई आध्यात्मिक रहस्यों का खुलासा किया।उनका स्पष्ट कहना है कि साधना से सृजित ऊर्जा का उपयोग वे जंगल के संरक्षण में लगाते हैं।प्रतिदिन वे श्रमदान भी करते हैं।अपनी गुफा को उन्होंने कोबरा कैव नाम दिया है।जहां आज भी नाग मौजूद हैं।

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