जशपुर,टीम पत्रवार्ता,11जनवरी 2020
जशपुर जिले के प्रवास पर आए जिले के प्रभारी सचिव विलास संदीपन भोस्कर ने जशपुर के समीप आंगनबाड़ी केन्द्र तपकरा का मुआयना किया। इस दौरान उन्होंने आंगनबाड़ी की साज-सज्जा एवं बच्चों को साफ-सुथरा देखकर प्रसन्नता जताई। प्रभारी सचिव के साथ कलेक्टर निलेशकुमार महादेव क्षीरसागर, वनमण्डलाधिकारी श्री कृष्ण जाधव, एसडीएम श्री दशरथ राजपूत, डीपीओ महिला एवं बाल विकास अजय शर्मा उनके साथ थे।
प्रभारी सचिव ने आंगनबाड़ी केन्द्र के निरीक्षण के दौरान बच्चों के लिए तैयार गर्म भोजन का भी मुआयना किया और भोजन की थाली बच्चों को अपने हाथों से परोसी। प्रभारी सचिव एवं कलेक्टर ने आंगनबाड़ी के सभी बच्चों को अपनी ओर से बादाम चिक्की देते हुए उन्हें रोज आंगनबाड़ी आने के लिए प्रेरित किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि जशपुर जिले में कुपोषण को दूर करने को लेकर जिला प्रशासन द्वारा मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत् विशेष प्रयास किए जा रहे है। आंगनबाड़ी में आने वाले बच्चों को ताजा-गर्म, पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है। भोजन की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने के साथ ही बच्चों को हरी सब्जियां, सोयाबड़ी भी भोजन में दी जा रही है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती पिंकी एवं सहायिका गुलाबी बाई को प्रभारी सचिव ने बच्चां के खान-पान पर विशेष रूप से ध्यान देने तथा बच्चों के पालकों को भी इसके लिए समझाईश देने की बात कही।
प्रभारी सचिव ने इस मौके पर डीपीओ अजय शर्मा से जिले में कुपोषण की स्थिति और इसको दूर करने के लिए संचालित कार्यक्रम के बारे में पूछताछ की। श्री शर्मा ने बताया कि जिले के मनोरा, सन्ना, आस्ता इलाके में बच्चों में कुपोषण की दर 30 से प्रतिशत से अधिक है। यहां जिला प्रशासन द्वारा डीएमएफ फंड से उपलब्ध कराई गई राशि से बच्चों को नियमित रूप से भोजन में अंडा एवं चिक्की दी जा रही है।
जिले के 75 ग्राम पंचायतों के आंगनबाड़ियों में जहां कुपोषण दर अधिक है, वहां गर्म भोजन की व्यवस्था की गई है। जिले के 1510 आंगनबाड़ियों में पोषण वाटिका तैयार की गई है। इसके माध्यम से बच्चों को 6 माह तक विभिन्न प्रकार के हरी सब्जी उपलब्ध हो सकेगी। बगीचा और सन्ना में कुपोषण दूर करने के लिए महुआ लड्डू, नियमित रूप से दिए जाने के की कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने बताया कि जिले में कुपोषित 18942 बच्चों में से 1464 बच्चें बीते चार महीनों में संचालित सुपोषण अभियान की वजह से सामान्य स्तर पर आ गए हैं।
यहाँ आज भी कुपोषित हैं बच्चे
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