... सुषमा तुम सचमुच जीत गई ! ...हम सब हार गए...फेलुअर सिस्टम का कड़वा सच...? 34 दिनों तक जिंदगी की जँग के बाद ..दुनियाँ को कह गई अलविदा....

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सुषमा तुम सचमुच जीत गई ! ...हम सब हार गए...फेलुअर सिस्टम का कड़वा सच...? 34 दिनों तक जिंदगी की जँग के बाद ..दुनियाँ को कह गई अलविदा....






➤योगेश थवाईत

जशपुर 13 जुलाई 2019  (पत्रवार्ता) आज समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखूं क्यूँ लिखूं किसके लिए लिखूँ।वह संवेदना ही थी सुषमा कि हम सब मिलकर तुमसे जीतना चाह रहे थे ....हमें उस फेलुअर सिस्टम पर तुमसे भी अधिक भरोसा था ....हमने सोच लिया था कि जिंदगी की जंग में हमारी ही जीत होगी ...पर तुम जीत गई सुषमा....हम हार गए....हम हार गए....

आज हम सब निःशब्द हैं। इस सिस्टम से दूर जाकर तुम खुश रहोगी सुषमा।यहां का फेलुअर सिस्टम तुम्हारे लिए नहीं।वो तो हमारी संवेदनाओं के कारण हमारी जिद थी कि हम सिस्टम का दरवाजा खटखटाते रहे पर यहां कौन सुनने वाला है साहब ...? सब के सब मतलबी ही तो हैं....? क्या शासन ? क्या प्रशासन .? क्या नेता ..? क्या मंत्री ..? न जिरह काम आई न वेदना ....।


सुषमा तुम जशपुर की बेटी हो अब स्थूल शरीर से भले ही तुम हमारे साथ नहीं पर तुम्हारे 34 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच का संघर्ष इस सिस्टम पर सवालिया निशान लगाता रहेगा।निश्चित ही शनिवार का यह दिन काला शनिवार है।आज तुमने सिस्टम पर सबसे बड़ा सवाल खड़े कर दिया ..जब...एक शासकीय कर्मचारी देश की लाचार और भ्रष्ट सिस्टम व्यवस्था से हार सकता है तो आम इंसान के लिए इस देश की सिस्टम से उम्मीद करना बेमानी है।

छत्तीसगढ़ के जशपुर के बगीचा विकासखण्ड के प्राथमिक शाला बिरासी में तुम्हारी यादें हमेशा ताजा बनी रहेंगी। 9 जून को सड़क हादसे की शिकार सुषमा के रीढ़ की हड्डी में गम्भीर चोट आई थी जिसे उच्च चिकित्सा के लिए राँची से दिल्ली रेफ़र कर दिया गया था।

पर दिलवालों की दिल्ली ने भी उसका 
साथ नहीं दिया।10-15 दिनों तक काफी 
भाग दौड़ करने के बाद भी एम्स जैसे 
शासकीय अस्पतालों में सुषमा भर्ती तक 
नहीं हो सकी। मदद के लिए जब 
स्वास्थ्य मंत्री भारत सरकार के पास 
गुहार लगाई गई तो उनका रटा 
रटाया जवाब मिला
"थोड़ा इंतजार करो सब हो जायेगा"।

सोचने वाली बात है एक भाई अपने बहन को इस हाल में देखकर कैसे इंतजार कर सकता था। सुषमा के भाई दीपक ने 

"जब मंत्री महोदय से कहा सर मेरी बहन जिंदगी-मौत से लड़ रही है और आप इंतजार की बात करते हैं तो मंत्री साहब का झकझोर कर देने बयान यह था कि "किसी दूसरे मरीज को बेड से उठाकर आपके मरीज को रख दें क्या?"

इस तरह का गैरजिम्मेदाराना बयान सुनकर सुषमा के परिजन अंदर तक टूट गए। अंततः थक हार कर फिर वे सुषमा को रिम्स राँची ले आये।वक्त के साथ पैसे भी ख़त्म हो रहे थे।इतने दिनों तक सिस्टम से लड़ते हुए 14-15 लाख खर्च हो चुके थे। थक हार कर फिर वे रिम्स राँची ले आये पर यहाँ भी किस्मत ने साथ नहीं दिया अस्पताल प्रबंधन ने वेंटीलेटर बेड नहीं होने की बात कहकर परिजनों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

अपने रिश्तेदारों और इष्ट-मित्रों की मदद से 14-15 लाख का इंतजाम करने वाला एक मध्यमवर्गीय परिवार सिस्टम से हारकर बेबस हो चुका था।अब ये भी सुषमा के बचने और बचाने की उम्मीद छोड़ चुके थे। अंततः हुआ भी वही नियति को कौन टाल सकता था ? शनिवार को जैसे ही सुषमा के निधन की खबर आई पूरा गाँव गमगीन हो गया। इष्ट-मित्र, रिश्तेदार तथा सभी शुभचिंतक निधन की खबर पाकर शोकाकुल परिवार को संबल प्रदान करने की कामना कर रहे हैं।

सुषमा तुमने बहुत संघर्ष किया और तुम जीत गईं हमें अपनी हार का जीवन भर मलाल रहेगा।हम वाकई इस सिस्टम से हार गए। अब इस देश के अपंग हो चुके सिस्टम को कोसने के अलावा कुछ नहीं बचा।सुषमा तुम्हे अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

आज हर कोई सिस्टम से सवाल पुछ रहा है और पूछता रहेगा ...

"सरकारें बदल जाती है,हालात नही बदलते हैं। आम और खास का अंतर जब तक बना रहेगा,यह सब ऐसे ही चलेगा ।"
विष्णु जोशी,पत्रकार कुनकुरी 

"बहुत दुःखद हुआ ,जहाँ तक एम्स की बात है वंहा की स्थिति इतनी भयावह रहती है कि जो थोड़ा अच्छा मरीज भी रहता है तो वह एम्स का सिस्टम को देख कर दम तोड़ देता है।मैं 4 माह पहले एक मरीज को ले कर गया था साथ मे 3 सांसद भी अपने अपने हिसाब से मदद के लिए लगे हुए थे पर किसी की वंहा कुछ नही चलती है एक बेड में चार चार पेसेंट एक के ऊपर एक सोये रहते है जमीन सड़क में बेसुध परिवार पड़े रहते है सब बेबस अपने परिजन की मौत का इंतजार कर रहे होते हैं।ऐसे में मरीज को एम्स ले जाना जान बूझ कर मौत के मुँह में धकेलने के बराबर होता है।"
आनंद गुप्ता,पत्रकार जशपुर 

"एम्स के बाहर लोगो को महीने अपने मरीजो के साथ सड़क किनारे रहना पड़ता है सीएमसी वैलरोर में 22 की तारीख मिली थी लेकिन गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति बिना उपचार के कब तक जियेगा।"
विकाश पाण्डेय,पत्रकार जशपुर 

"चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। इसके लिए राजनीति के चश्मे को उतारकर काम करना होगा। सरकारी अस्पतालों में डाक्टर नहीं है,निजी चिक्तसल्यो में पैसा ही भगवान है। सरकारी योजनाओ में शोर अधिक,जमीनी हकीकत बेहद डरावना। आज किसी के घर में कोई बीमार पड़ जाए तो पूरा परिवार आर्थिक और मानसिक रूप से बिखर जाता है।हमारे नीति निर्माताओं को समझना होगा बीमारी ए पी एल और बी पी एल राशन कार्ड देख कर नहीं आती है।" 
रविन्द्र थवाईत,पत्रकार जशपुर

कितने हैं नादान यहां सब
कहते हैं मर गई सुषमा सब
कैसे सच्चाई बयां करूँ
कि मौत नहीं यह हत्या है
नियति हो सकती थी
जब भर्ती भी कर लेते उसको
दवा नहीं दे पाए तो 
हमदर्दी भी दे देते उसको
दिल वालों की दिल्ली के दर पर
घुट घुट कर वह मारी गई
सिस्टम
समाज
मंत्री, नेता
कौन है इस हत्या का जिम्मेदार
बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ
बेटी के नाम करोड़ों का व्यापार 
मौत से जूझ रही थी वह
नए भारत में
एक माह में एक बेड न मिला
बेटियों के लिये यह कैसा प्यार
सुषमा सहित इलाज के अभाव में मरने वाली 
हजारों बहनों को विनम्र श्रद्धांजलि

विश्वबंधु शर्मा,पत्रकार जशपुर 

"सड़क दुर्घटना के बाद 33 दिनों तक जिंदा लाश बनी शिक्षिका सुषमा चौहान के इलाज के लिए सांसद,विधायक,मंत्री से लेकर हर वो व्यक्ति जहां से उम्मीद की एक किरण नजर आती वहाँ सुषमा के परिजन गुहार लगाते रहे,पर पद के अहंकार में डूबे जनप्रतिनिधियों राजनेताओं ने इनके परिजनों को सिर्फ झूठा दिलासा दिया,,सुषमा के जिंदगी और मौत के 33 दिनों के सफर में अगर किसी भी जनप्रतिनिधि राजनेता ने इनके इलाज के लिए मदद की होती तो आज सुषमा जिंदा होती।" 
दीपक सिंह,पत्रकार जशपुर 

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1 Comments

Unknown said…
अफसोस होती है ऐसी घटना सुनकर अभी के दौर में एक गरीब की कौन सुनता यही हादसा अगर किसी सेलेब्रिटी के साथ हो जाता मदद के लिए मंत्री नेता समाज सुधारकों की लाईन लग जाती।but all helpless.

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