... खबर खास पत्रवार्ता : घुईटांगर से ग्रीस तक: अनिमेष कुजूर ने 100 मीटर दौड़ में रचा इतिहास, भारतीय एथलेटिक्स को दी नई उड़ान।

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खबर खास पत्रवार्ता : घुईटांगर से ग्रीस तक: अनिमेष कुजूर ने 100 मीटर दौड़ में रचा इतिहास, भारतीय एथलेटिक्स को दी नई उड़ान।

 


जशपुर, टीम पत्रवार्ता, 10 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिले जशपुर के छोटे से गांव घुइटांगर से निकले अनिमेष कुजूर ने भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है। कभी खेतों के मेड़ों पर नंगे पांव दौड़ने वाला यह धावक आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का परचम लहरा रहा है।

5 जुलाई को ग्रीस के वारी शहर में आयोजित ड्रोमिया इंटरनेशनल स्प्रिंट मीट में अनिमेष ने 100 मीटर दौड़ को महज 10.18 सेकंड में पूरा कर देश के लिए सबसे तेज़ दौड़ का रिकॉर्ड कायम किया। भले ही वे इस प्रतियोगिता में तीसरे स्थान पर रहे (प्रथम स्थान दक्षिण अफ्रीका व द्वितीय स्थान ओमान के धावक को मिला), लेकिन भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक पल था।

अनिमेष बोले – "जब समय सुना, समझ ही नहीं आया!"

अनिमेष ने बताया कि जब उन्हें फोन पर बताया गया कि उन्होंने 10.18 सेकंड में दौड़ पूरी की है, तो वह समझ ही नहीं पाए कि इसका मतलब क्या है। बाद में जब उन्होंने टीवी और अखबारों में जाना कि यह भारत की सबसे तेज दौड़ बन चुकी है, तो उनके लिए यह एक अविस्मरणीय क्षण था।

सैनिक स्कूल बना जीवन का टर्निंग पॉइंट

अनिमेष की सफलता यूं ही नहीं आई। बचपन से ही सीमित संसाधनों में रहकर उन्होंने मेहनत और अनुशासन को अपना हथियार बनाया।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा महासमुंद के वेडनर मिशन स्कूल से हुई, फिर वे कांकेर आए और सेंट माइकल स्कूल में पढ़े।

छठवीं कक्षा में उनका चयन सैनिक स्कूल अंबिकापुर में हुआ, जहाँ से उनकी जीवनशैली और सोच में बड़ा परिवर्तन आया।

पिता अमृत कुजूर (डीएसपी, छत्तीसगढ़ पुलिस) बताते हैं

 “सैनिक स्कूल में दाखिला हमारे लिए किसी सपने से कम नहीं था। वही अनुशासन और माहौल अनिमेष को आज इस मुकाम तक लाया है।”

एक साथ पाँच स्वर्ण पदक, और फिर राष्ट्रीय ट्रैक की ओर

कांकेर में आयोजित जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में अनिमेष ने 100, 200, 400 मीटर दौड़, लॉन्ग जंप और हाई जंप – सभी पाँचों स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीते। यह परफॉर्मेंस उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

इसके बाद वे रायपुर वेस्ट ज़ोन एथलेटिक्स मीट और फिर गुवाहाटी अंडर-18 नेशनल चैंपियनशिप तक पहुंचे।

पहली बार उन्होंने प्रोफेशनल स्पाइक शूज़ पहने और दोनों इवेंट्स में चौथा स्थान प्राप्त किया।

जशपुर से अंतरराष्ट्रीय मंच तक

अनिमेष कुजूर की यात्रा इस बात का प्रमाण है कि सपनों की उड़ान संसाधनों की मोहताज नहीं होती। जशपुर जैसे दूरस्थ वनांचल क्षेत्र से निकलकर अनिमेष ने यह दिखा दिया कि दृढ़ निश्चय, परिश्रम और अवसर मिलने पर हर प्रतिभा अंतरराष्ट्रीय चमक बिखेर सकती है।

 उनकी कहानी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है — कि नंगे पांव शुरू हुई दौड़, दुनिया की निगाहों तक जा सकती है।

जशपुर के घुइटांगर से ग्रीस तक की यह दौड़ सिर्फ 100 मीटर की नहीं, बल्कि संघर्ष, जुनून और जज़्बे की एक लंबी छलांग है।


 ।। टीम पत्रवार्ता।।

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