... SPECIAL:- "कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी" "जूदेव" की वह बात जिसे आपने अब तक नहीं जाना

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SPECIAL:- "कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी" "जूदेव" की वह बात जिसे आपने अब तक नहीं जाना



 By Yogesh Thawait  

जशपुर(पत्रवार्ता.कॉम) अजेय योद्धा स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव की पांचवी पुण्य तिथि पर हर कोई अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है और उस दिव्य चेतना को आज भी लोग महसूस कर रहे हैं।स्वर्गीय जूदेव के जीवन से जुड़ी कई बातें हैं जिन्हें आप हम भी नहीं जानते 



ऐसी ही एक बात जो राजा रणविजय सिंह ने बताई उनके ही शब्दों में आपके सामने पत्रवार्ता की पुष्ट व पुख्ता तर्ज पर 

रणविजय सिंह ने पत्रवार्ता से चर्चे में बताया कि
 स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव जैसा कोई
 दिव्य युगपुरुष न था न होगा 
रियासत और पारिवारिक व्यवस्था
 में मैं "राजा" जरुर हूँ पर असली "राजा"
 तो स्व दिलीप सिंह जूदेव थे 
जो हर किसी के दिलों पर राज करते थे
उनको भाव पूर्ण "श्रधांजलि" 

मुझे राजा बनाने वाले भी जूदेव जी ही थे जिन्होंने पारिवारिक व्यवस्था के तहत उनका राजतिलक भी कराया था   

एक दिलचस्प बात जो उन्होंने बताई जो यह थी कि स्व दिलीप सिंह जूदेव जब भी उनका परिचय कराते थे तो यही बताते थे की रणविजय मेरे बड़े भाई युवराज उपेन्द्र सिंह के बड़े लड़के हैं ,मेरे भतीजे हैं और जशपुर के राजा साहब हैं 


इतने सम्मान के साथ परिचय कराते थे कि उनमें लेश मात्र भी कोई कसक नहीं दिखाई पड़ती थीदिलीप सिंह जूदेव ने जिस अंदाज के साथ अपना जीवन जिया सबको स्नेह के एक सूत्र में पिरोये रखा आज उस दिव्य चेतना से इसी उर्जा की कामना करता हूँ कि उस प्रताप को सदैव जग जीवंत बनाकर उनके पदचिन्हों पर चल सकूँ 



 इतना ही नहीं हर मुश्किल घड़ी में रणविजय ने भी उनका साथ साथ नहीं छोड़ा वे बताते हैं कि स्व दिलीप सिंह जूदेव के साथ वे भी हमेशा खड़े रहते थे चाहे वह अविभाजित मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने का मामला हो या जोगी जूदेव का जंग हो

"कुमार"और "राजा" को अलग कर दिया तो जशपुर  हो जाएगा कमजोर .?


हर विपरीत परिस्थिति में "कुमार और राजा" को अलग करने की कवायद हुई जिससे जशपुर को तोड़ा जा सके कमजोर किया जा सके पर एक शसक्त व जिम्मेदार पालक,संरक्षक व संवाहक के रुप में स्व दिलीप सिंह जूदेव की भूमिका रही और सारथी बनकर अजेय योद्धा के रूप में लड़ते हुए जशपुर विरासत की बागडोर सौंप कर हम सबसे दूर चले गए।रणविजय ने बताया कि उनकी इस विरासत को सम्हालकर रखना यहाँ के लोगों से जुड़कर रहना मेरी पहली जिम्मेदारी है जो मैंने उनसे सीखा है और इसी सीख के साथ पुनः मेरी श्रद्धांजलि 
ॐ शांति   



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